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Munshi Premchand ka Jeevan Parichay || for Class 10th
Biography of Munshi Premchand in Hindi
नमस्कार! दोस्तों आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि (Munshi Premchand ka Jeevan Parichay) मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं जोकि परीक्षा में अक्सर पूछा जाता है हमने उनकी जीवन परिचय को सरलतम भाषा में आपके समक्ष प्रस्तुत किया है ताकि आप इसे आसानी से याद कर सके
मुंशी प्रेमचंद्र जी का जीवन परिचय
1. | मूल नाम | धनपत राय श्रीवास्तव |
2. | अन्य नाम | नवाब राय |
3. | पूरा नाम | मुंशी प्रेमचंद्र |
4. | जन्म | 31 जुलाई 1880 |
5. | जन्म स्थान | लमही वाराणसी उत्तर प्रदेश |
6. | माता | आनंदी देवी |
7. | पिता | मुंशी अजायब लाल |
8. | पत्नी | शिवरानी देवी |
9. | पुत्र | श्री पतराय, अमृतराय |
10 | शिक्षा | 1898 में मैट्रिक, अंग्रेजी ,दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया, 1919 में B.A .पास करने के बाद शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए |
11. | मृत्यु | 8 अक्टूबर 1936 |
जीवन परिचय
आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही नामक गांव में हुआ ,इनकी माता का नाम आनंदी देवी एवं पिता का नाम मुंशी अजायब राय था, जो लमही में डाक मुंशी थे, 7 वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा 16 वर्ष की अवस्था में उनके पिता का निधन हो गया जिस कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्ष में रहा, उनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था
शिक्षा
प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा भारती में हुई 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हुए, नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी B.A..पास करने के बाद में शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हुए
विवाह
उनका पहला विवाह उस समय की परंपरा के अनुसार 15 वर्ष की उम्र में हुआ जो सफल नहीं हो रहा 1906 में उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया उनकी तीन संताने थी पतराय,अमृतराय और कमला देवी श्रीवास्तव हुई
1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से त्यागपत्र दे दिया, इसके बाद उन्होंने मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में संपादक के रूप में कार्य किया उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन भी किया, 1934 में आई मजदूर की कहानी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है जीवन के अंतिम दिनों में साहित्यिक रीजन में लगे रहे, निरंतर बिगड़ती स्वास्थ्य के कारण लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया
साहित्यिक परिचय
उपन्यास सम्राट कहीं जाने वाले प्रेमचंद्र की साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था आरंभ में भी नवाब राय के नाम से उर्दू भाषा में लिखा करते थे उनकी पहली रचना प्रकाशित ही रही जिसका जिक्र उन्होंने पहली रचना नाम अपने लेख में किया उनका पहला कहानी संग्रह सोजे वतन प्रकाशित हुआ देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस संग्रह को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंधित कर इसकी सभी प्रतियां जप्त कर ली और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन ना करने की चेतावनी दी जिसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद्र के से लिखना पड़ा, उन्हें प्रेमचंद्र नाम से लिखने का सुझाव देने वाले दया नारायणनिगम थे
प्रेमचंद्र नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी, जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई 1915 में उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती में पहली बार उनकी कहानी ‘सौत’ नाम से प्रकाशित हुई
1919 में उनका पहला उपन्यास सेवासदन प्रकाशित हुआ उन्होंने लगभग 300 कहानियां तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखी असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद भी पूरी तरह साहित्य सृजन में लग गए ‘रंगभूमि’ नामक उपन्यास के लिए उन्हें ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक सम्मान’ सम्मानित किया गया
(Munshi Premchand ka Jeevan Parichay)
प्रेमचंद की रचनाओं में उस दौर की समाज सुधारक आंदोलन स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है उनमें दहेज अनमेल विवाह पराधीनता लगान छुआछूत जाति भेद आधुनिकता विधवा विवाह आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को प्रेमचंद्र युग कहा जाता है
भाषा शैली
प्रेमचंद्र जी उर्दू से हिंदी में आए थे अतः उनकी भाषा में उर्दू की लोकोक्तियां तथा मुहावरे की प्रयोग की प्रचुरता मिलती है उनकी भाषा सहज, सरल, प्रवाह पूर्ण, मुहावरेदार एवं प्रभावशाली है तथा उसमें व्यंजना शक्ति भी विद्यमान हैं उनकी शैली आकर्षक है इसमें मार्मिकता है मुंशी प्रेमचंद्र की रचनाओं की विशेषताएं है
रचनाएं
प्रेमचंद्र द्वारा लिखी गई प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है-
उपन्यास- असरारे मआबिद हिंदी रूपांतरण- देवस्थान, हम खुरमा हम शबाब हिंदी रूपांतरण -प्रेमा रूठी रानी
सेवा सदन, प्रेमाश्रम ,रंगभूमि, निर्मला ,कायाकल्प, गवन, कर्मभूमि ,प्रतिज्ञा, गोदान, वरदान तथा मंगलसूत्र
कहानी प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियां लिखी उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है-
दो बैलों की कथा, पूस की रात ,ईदगाह, दो सखियां, नमक का दरोगा, बड़े बाबू ,सुजान भक्त, बड़े घर की बेटी, परमेश्वर,परीक्षा, शतरंज का खिलाड़ी, बलिदान, आदि
कहानी संग्रह- सोजे वतन, सप्त सरोज, नवनिधि ,समय यात्रा, मानसरोवर आठ भागों में प्रकाशित है
नाटक- प्रेमचंद ने संग्राम (1923), कर्बला (1924) और प्रेम की वेदी (1933) नाटकों की रचना की।
निबंध- पुराना जमाना, नया जमाना ,स्वराज की फायदे, कहानी कला, हिंदू उर्दू की एकता, उपन्यास जीवन में साहित्य का स्थान , महाजनी सभ्यता आदि
अनुवाद- प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे। उन्होंने दूसरी भाषाओं के जिन लेखकों को पढ़ा और जिनसे प्रभावित हुए, उनकी कृतियों का अनुवाद भी किया। ‘टॉलस्टॉय की कहानियाँ’ (1923), गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल (1930), चाँदी की डिबिया (1931) और न्याय (1931) नाम से अनुवाद किया।
पत्र-पत्रिकाओं का संपादन
प्रेमचंद्र ने माधुरी, हंस ,जागरण, मर्यादा का संपादन किया