Child Development and Pedagogy
Samaveshi Shiksha Study Material in Hindi
समावेशी शिक्षा के महत्वपूर्ण नोट्स
नमस्कार! दोस्तों आज इस पोस्ट (Samaveshi Shiksha Study Material in Hindi ) में हम समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) के अर्थ,आवश्यकता,उद्देश्य का अध्ययन करेंगे। समावेशी शिक्षा से संबंधित प्रश्न सभी टीचिंग एग्जाम्स जैसे NVS,DSSSB,CTET,TET,HTET,UPTET,मैं पूछे जाते हैं। हमने इस पोस्ट में समावेशी शिक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को विस्तार से समझाया है जिससे आपको परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों को हल करने में काफी मदद मिलेगी।
Samaveshi Shiksha Study Material in Hindi
What is Inclusive education (समावेशी शिक्षा)
समावेशी शिक्षा को ज्यादातर लोग आज आक्षमता अर्थात कम सुनने वाले बच्चे, विकलांग बच्चे या मंदबुद्धि बच्चों को सामान्य बच्चों के समान शिक्षा देना समझते हैं ।मगर इस शब्द का अर्थ अधिक व्यापक है।समावेशी शिक्षा में ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जो स्कूल छोड़ चुके हैं ,या जिन्हें निकाल दिया गया है ,या भी गरीब हैं, भूखे हैं, तथा अलग धर्म, या जाति से संबंधित है ।
समावेशी शिक्षा मुख्य रूप से खेतों, घरों और अन्य जगह बाल श्रमिक के रूप में काम करने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ने को लेकर संबंधित है।
जाने !क्या है समावेशी शिक्षा का अर्थ ?
समावेशी शिक्षा का अर्थ यह भी है कि जिम्मेदार शिक्षक, अभिभावक एवं नागरिक होने के नाते हमें ऐसे बच्चों को खोजें एवं शिक्षा की धारा से जुड़े यह प्रयास स्कूलों गैर सरकारी संस्थाओं परिवारों समेत अन्य लोगों को भी करना चाहिए।
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता के महत्वपूर्ण तर्क
- संवैधानिक अधिकार- सभी नागरिक समान है जाति, धर्म, नरसी एवं लिंग के अनुसार भेदभाव नहीं किया जाएगा। फिर शिक्षा में समावेशन क्यों ना हो।
- शैक्षिक- अनुसंधान से पता चला है कि सामान्य बुद्धि के साथ वंचित बच्चे बेहतर सीखते हैं। अतः समावेशी शिक्षा जरूरी है।
- सामाजिक- सभी लोग एक ही समाज में पढ़ते हैं इसलिए शिक्षा में भी सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ रखा जाना चाहिए
- मनोवैज्ञानिक– मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हर बच्चा सीखता है चाहे वह एक विशिष्ट बालक हो या सामान्यतः समावेशी शिक्षा एक जरूरत है
समावेशी शिक्षा से लाभ
- शिक्षा का सार्वजनिक कारण
- गरीब एवं बेरोजगारी का उन्मूलन
- शैक्षिक एवं सामाजिक भेदभाव का उन्मूलन
- संवैधानिक अधिकारों का क्रियान्वयन
समावेशी शिक्षा की चुनौतियां
- समावेशी शिक्षा सभी उम्र के लिए प्रभावित होती है लेकिन उम्र घटने एवं बढ़ने पर मुश्किलों का सामना होता है
- शिक्षकों का विशिष्ट बालक को को पहचान पाना मुश्किल हो रहा है और दैनिक स्तर पर शिक्षण पद्धतियों एवं दृश्य श्रव्य सामग्री की अनुपलब्धता रही है
- समावेशी शिक्षा के अनुरूप नियम ज्यादातर किताबों में है और व्यवहारिक नहीं किए जा सकते हैं
- आज भी कई विद्यालयों में ऐसा मूलभूत ढांचा नहीं बनाया जा सका है जिसके द्वारा शिक्षा को बढ़ावा मिले
- मूल्यांकन प्रणाली आज भी लिखित परीक्षा पर जोड़ देती है जबकि विशिष्ट बालक लिख नहीं सकते
समावेशी कक्षा कक्ष
- कक्षा में शिक्षक के साथ-साथ विभिन्न पृष्ठभूमि के बच्चे होने चाहिए।
- समावेशी कक्षा में शिक्षक का व्यवहार आत्मीयता पूर्ण एवं मित्र मत होना चाहिए बच्चों को देख कर मुस्कुराना, प्रेरित करना चाहिए।
- अलग-अलग बैठने की बजाय बच्चे एक घेरा बनाकर बैठे एवं शिक्षक उनके मध्य हो।
- शिक्षण को बच्चों की विविध पृष्ठभूमि एवं मानसिक स्तर को देखते हुए 1 दिन पहले प्लान करना चाहिए।
- अखबारों की कटिंग ,दृश्य सामग्री, कठपुतलियां ,पोस्टर आदि का प्रयोग किया जाए.
- मूल्यांकन लिखित ही नहीं बल्कि उन परीक्षणों से भी होना चाहिए जो विशिष्ट बच्चे कर सके हो सके तो सतत एवं व्यापक मूल्यांकन होना चाहिए।
- विविध बालकों के अनुसार अलग-अलग शिक्षण पद्धति का प्रयोग होना चाहिए।
अधिगम अक्षमता (Learning Disability)
बच्चों द्वारा सीखने, सुनने, पढ़ने, लिखने, देखने एवं तर्कशक्ति कौशल प्रयोग करने में कठिनाइयों को ही “अधिगम अक्षमता” कहते हैं।
अधिगम अक्षमता के प्रकार
- अफेजिया–भाषा एवं संप्रेषण अधिगम आस्क्तता को ही अफेजिया कहते हैं।
- डिस्फेजिया – मस्तिष्क में क्षति के कारण बातचीत करने में आंशिक या पूर्ण क्षमता को डिस्फेजिया कहते हैं।
- एलेक्सिया– मस्तिष्क में किसी प्रकार की क्षति के कारण पढ़ने में आ क्षमता को एलेक्सिया कहते हैं।
- डिस्लेक्सिया– डिस्लेक्सिया का संबंध पठन विकार से है इस अधिगम अक्षमता में बालक को पढ़ने में कठिनाई होती है।क्योंकि वह कई शब्दों में अंतर नहीं कर पाता है। जैसे-b और d, was और saw
- अप्रेक्सिया- अप्रेक्सिया ऐसा शारीरिक विकार है,जिसके कारण व्यक्ति की मांसपेशियों के संचालन से संबंध सूक्ष्म गतिक कौशल में निपुण नहीं हो पाते हैं ।जैसे- लिखना।
- डिस्केलकुलिया- इस विकार में बालक गणित को समझने में कठिनाइयों का अनुभव करते हैं।
- डेसथीमिया – डेसथीमिया गंभीर तनाव की अवस्था को कहा जाता है इस अवस्था में व्यक्ति के मन है। स्थिति सदैव निम्न रहती है।
व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर इन बालकों का विभाजन मुख्यतः दो प्रकार में किया जाता है।
- सामान्य बालक
- विशिष्ट बालक
इन सभी बालकों के लिए साथ एक ही स्थान पर शिक्षा की व्यवस्था की जाती है तो ऐसे ही समावेशी शिक्षा कहा जाता है।
विशिष्ट बालक- ऐसे बालक जो शारीरिक मानसिक एवं संवेगात्मक रूप से सामान्य बालकों से भिंन्न होते हैं विशिष्ट बालक कहलाते हैं
जैसे:-
बौद्धिक दृष्टि से– बौद्धिक दृष्टि से यह बालक दो प्रकार के होते हैं- प्रतिभाशाली और मंदबुद्धि
शैक्षिक दृष्टि से- शैक्षिक दृष्टि से यह बालक दो प्रकार के होते हैं –तीव्र बुद्धि बालक और पिछड़े बालक
शारीरिक दृष्टि से- शारीरिक रूप से इन में अलग-अलग दोष होते हैं जैसे –कम सुनने वाले, बहरे, दूरदृष्टि युक्त बालक ,अंधे बालक ,अस्थि दोष युक्त बालक
समस्यात्मक बालक- समस्यात्मक बालक दो प्रकार के होते हैं –संवेगात्मक असंतुलित और सामाजिक कुसंयोजित
प्रतिभाशाली बालक- ऐसे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि सामान्य बालकों से उच्च होती है, प्रतिभाशाली बालक कहलाते हैं
टर्मन के अनुसार “ऐसे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 140 से अधिक होती है प्रतिभाशाली बालक कहलाते हैं”।
प्रतिभाशाली बालक विशेषताएं-
- ऐसे बालक खेलना अधिक पसंद करते हैं।
- यह किसी भी परिस्थिति में सरलता से समायोजन स्थापित कर लेते हैं।
- यह कठिन विषयों में अधिक रुचि रखते हैं।
- इनके लिए विस्तृत एवं जटिल पाठ्यक्रम तैयार करना चाहिए।
- ऐसे विद्यार्थियों के लिए अलग से शिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए।
मंदबुद्धि बालक-ऐसी बालक जिनकी बुद्धि लब्धि सामान्य बालकों से निम्न होती है, मंदबुद्धि बालक कहलाते हैं इनकी बुद्धि लब्धि प्रायः 85 से कम होती है।
विशेषताएं
- ऐसे बालक कठिन विषयों (गणित,विज्ञान,व्याकरण) मैं रुचि नहीं रखते हैं
- यह मानसिक कार्य की अपेक्षा शारीरिक कार्य करना अधिक पसंद करते हैं
- इनकी सीखने की गति मंद होती है
- ऐसे बालकों को मंद गति से पढ़ाना चाहिए
- इन बालकों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए
- ऐसे बालक को पढ़ाने के लिए अतिरिक्त समय देना चाहिए
पिछड़े बालक- ऐसे बालक जो कक्षा में औसत कार्य को नहीं कर पाते, तथा कक्षा की औसत बच्चों से पीछे रह जाते हैं पिछड़े बालक कहलाते हैं।
शिक्षण प्रक्रिया में किसी भी शिक्षक की यह मुख्य जिम्मेदारी होती है कि कक्षा में शैक्षिक दृष्टिकोण से पीछे हो चुके इन बालकों की पहचान करें उनकी समस्या का निदान करें तथा उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करें यदि पिछड़ने के पीछे आर्थिक कारण वजह है तो छात्रवृत्ति का प्रबंध करें।
दृष्टि दोष से ग्रसित बच्चे- किसी वस्तु पुस्तक के आश्रम पर लिखे गए शब्दों को देखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं तो ऐसे बच्चे दृष्टि दोष के अंतर्गत आते हैं
पहचान-
- ऐसे बच्चे पुस्तक को काफी नजदीक से पढ़ते हैं
- श्यामपट्ट पर लिखें शब्दों को बार बार पूछते हैं
- यह बालक बार-बार आंखें मलते हैं तथा भोहे सिकुड़ते हैं
निदान-
ऐसे बच्चों को कक्षा की सबसे अगली पंक्ति में बिठाया जाए इस दोष के बारे में उसके अभिभावक को सूचित किया जाए तथा अच्छी नेत्र विशेषज्ञ से दिखाने का सुझाव दिया जाए यदि चश्मा लगाने से समस्या दूर हो तो तत्काल चश्मा लगवा देना चाहिए
श्रवण दोष से ग्रसित बच्चे– यदि कोई बच्चा वातावरण की आवाज सामान्य बच्चे की अपेक्षा कम सुन पाता है तो वह श्रवण दोष से ग्रसित होता है सामान्यत में सुनने की क्षमता 0 से 25 डेसीबल होती है
पहचान-
श्रवण दोष से ग्रसित बच्चे बोलने वाले की तरफ कान सम्मुख होकर सुनते हैं यह कान के पास बोलने पर सुनते हैं प्राय ऐसे बच्चे कान में उंगली डालकर घुमाया करते हैं
अस्थिदोष से ग्रसित बच्चे–कि संबंधित और क्षमता के अंतर्गत बच्चों का हाथ पैर क्षतिग्रस्त होना या उंगलियों ना होना मांसपेशियों के तालमेल में समस्या आदि हो सकता है जिससे क्रियाकलाप में कठिनाई आती है
अध्यापक भूमिका– ऐसे बच्चों के साथ शिक्षक को आत्मीयता का भाव प्रदर्शित करते हुए उनका नाम पूछकर कक्षा के सभी बच्चों का आपस में परिचय कराना चाहिए बच्चे को कभी यह अनुभव ना होने दें कि वह अमुक कार्य नहीं कर सकता कक्षा शिक्षण में ऐसे बच्चों की सहभागिता अवश्य होनी चाहिए।
इस पोस्ट मे हमने Samaveshi Shiksha Study Material in Hindi नोट्स आपके साथ शेअर किए है जो कि सभी शिक्षक भर्ती परीक्षाओ मे पूछे जाने वाला एक महत्वपूर्ण टॉपिक है इस विषय से परीक्षा मे प्रश्न पूछे ही ही जाते है इसी लिए आप इस टॉपिक का अध्यान ध्यान पूर्वक करे। जिससे आगामी शिक्षक भर्ती परीक्षाओ जैसे ctet uptet HTET NET NVS आदि परीक्षाओ मे आप अच्छे अंक प्राप्त कर सके ।
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