Sumitranandan Pant ka Jivan Parichay in Hindi

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय|Biography of Sumitranandan pant

आज हम जानेंगे! प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाने वाले कवि सुमित्रानंदन पंत के बारे में (Sumitranandan Pant ka Jivan Parichay in Hindi) साथ ही उनकी सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएं और उनकी भाषा शैली का संपूर्ण विवरण इस आर्टिकल में हम आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं

Sumitranandan Pant ka Jivan Parichay

1. पूरा नाम सुमित्रानंदन पंत
2. दूसरा नाम गुसाई दत्त
3. जन्म 20 मई 1900
4. पिता श्री गंगाधर दत्त
5. माता श्रीमती सरस्वती देवी
6. जन्म स्थान कौसानी ,अल्मोड़ा (बागेश्वर) उत्तराखंड
7. हाई स्कूल शिक्षा गवर्नमेंट हाई स्कूल अल्मोड़ा
8. उच्च शिक्षा 1918 काशी क्विज कॉलेज, म्योर कॉलेज इलाहाबाद
9. मासिक पत्रिका 1938 में मासिक पत्रिका “रूपाभ” का संपादन
10. कर्मभूमि इलाहाबाद (प्रयागराज)
11. कार्यशैली अध्यापक, लेखक, कवि
12. कार्यालय 1950 से 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता
13. कविता 1958 में युगवाणी से वाणी काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन चिदंबरा प्रकाशित हुआ, जिस पर 1968 में उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
14. उपाधि 1961 में पद्म भूषण की उपाधि से विभूषित हुए।
15. काव्य संग्रह 1960 में ‘कला’ और ‘बूढ़ा चांद’ काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
16. प्रकाशन 1964 में विशाल महाकाव्य लोकायतन का प्रकाशन हुआ।
17. मृत्यु 29 दिसंबर 1977 को (प्रयागराज)

जीवन परिचय

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 20 मई सन 1900 में अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था, इनकी माता का नाम सरस्वती देवी तथा पिता का नाम पंडित गंगाधरपंत था जो एक धार्मिक ब्राह्मण थे जन्म के 6 घंटे बाद ही इनकी माता सरस्वती देवी का देहांत हो गया तब इनका पालन-पोषण इनकी बुआ ने किया किया पंत जी की प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई, काशी नारायण स्कूल में मैट्रिक की परीक्षा पास की और इंटर में कॉलेज छोड़कर असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए

सन 1956 ईस्वी में उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें ₹100000 के भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया तथा भारत सरकार ने पद्मभूषण से अलंकृत किया था आधुनिक युग के क्रांतिकारी कवियों में पंत जी बहुत ऊंचा स्थान हैं निराला की भांति ही पंत जी ने भी कविता के लिए भाषा व्याकरण और दोनों के बंधनों को मानने से इनकार कर दिया पंत जी के काव्य को छायावादी और प्रगतिवादी दो भागों में बांटा जा सकता है परंतु समय-समय पर उनके कार्य में अनेक परिवर्तन साफ दिखाई पड़ते हैं खड़ी बोली का जो मधुर कोमल कांत रूप जी की कृतियों में मिलता है वह अत्यंत दुर्लभ है इस प्रकार सन 1977 ईस्वी में उनका स्वर्गवास हो गया

साहित्यिक परिचय

कवि सुमित्रानंदन पंत 7 वर्ष की अल्पायु से ही कविताओं की रचना करने लगे थे उन्होंने रूपभा पत्रिका का संपादन किया तत्पश्चात पंत जी का परिचय अरविंद घोष से हुआ और उसने उनसे प्रभावित होकर अनेक रचनाएं की 1916 में पद्म भूषण सम्मान मिला तथा “कला और बूढ़ा चांद” पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला छायावादी कविताएं अत्यंत कमल एवं मृदुल भावों को अभिव्यक्त करती है इन के कारणों से पंत जी को “प्रकृति का सुकुमार कवि” कहा जाता है

छायावाद के महत्वपूर्ण स्तंभ सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के चितेरे कवि हैं हिंदी की कविता में प्रकृति को पहली बार प्रमुख विषय बनाने का काम पर नहीं किया उनकी कविता प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंधों का दस्तावेज है

प्रकृति के अद्भुत चित्रकार पंत का मिजाज कविता में बदलाव का पक्षधर रहा है शुरुआती दौर में उन्होंने छायावादी कविताएं लिखी पल-पल परिवर्तित प्रकृति बेस इन्हें जादू की तरह आकृष्ट कर रहा था बाद में चलकर प्रगतिशील दौड़ में ताजा और वे आंखें जैसी कविताएं भी लिखी इनके साथ ही अरविंद के मानववाद से प्रभावित होकर माना तुम सबसे सुंदर तक जैसी पंक्तियां भी लिखते रहें उन्होंने नाटक, कहानी, आत्मकथा ,उपन्यास और आलोचना के क्षेत्र में भी काम किया रूपाय नामक पत्रिका का संपादन भी किया जिसमें प्रगतिवादी साहित्य का विस्तार से विचार-विमर्श होता है

रचनाएं

  • उपवास,
  • पल्लव,
  • वीणा,
  • ग्रंथि,
  • गुंजन,
  • ग्राम्य,
  • युगांत,
  • युगांतर,
  • स्वर्ण किरण,
  • स्वर्ण धूलि,
  • कला और बूढ़ा चांद,
  • लोकायतन,
  • सत्य काम,
  • मुक्ति यज्ञ,
  • तारा पथ,
  • मानसी,
  • युगवाणी,
  • उत्तरा, र
  • जत शिखर,
  • शिल्पी,
  • सौवर्ण,
  • अतिमा,
  • पतझड़,
  • अवगुंठित,
  • जोतिस्ना,
  • मेघनाथ वध आदि।

प्रमुख रचनाएं

युगपथ, चिदंबरा, पल्लविनी, स्वच्छंद, आदि।

अनूदित रचनाएं

मधुज्वाल (उमर खय्याम की रुबाईयों का फारसी से हिंदी में अनुवाद)

अन्य कवियों के साथ संग्रह

खादी के फूल (हरिवंश राय बच्चन), प्रथम रश्मि, अनुभूति, परिवर्तन आदि।

भाषा शैली

पंत जी की भाषा कोमल कांत पदावली से युक्त खड़ी बोली है पंत जी की शैली अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला के कवियों से प्रभावित गीत आत्मक मुक्तक शैली है

साहित्य में स्थान

पंत जी असाधारण प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने पंत जी के काव्य का विवेचन करते हुए लिखा है-

“पंत जी केवल शिल्प शिल्पी ही नहीं महानुभाव शिल्पी हैं वे सौंदर्य के निरंतर निखरती सूक्ष्म रूप को वाणी देने वाले भाव शिल्पी भी हैं”

आधुनिक काव्य के कवियों में पंत जी का महत्वपूर्ण स्थान है

महत्वपूर्ण बिंदु

> सुमित्रानंदन पंत का घर आज “सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक व वीथिका” बन चुका है।

> उनके कपड़े, चश्मा, कलम आदिव्यक्तिगत वस्तुएं इसी घर में सुरक्षित रखी गई हैं।

> संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार और हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला वाचस्पति का प्रशस्ति पत्र भी मौजूद है।

> उनकी रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपि अभी सुरक्षित रखी हैं।

> कालाकांकर के कुवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किए गए उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि अभी मौजूद हैं।

> सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं।

> इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा

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